Home > Blogs > Liver Cancer > Overview > यकृत (लिवर) कैंसर
⦿ पेट के ऊपरी भाग में दर्द: यकृत में असामान्य वृद्धि या गांठ उत्पन्न होने के कारण दाईं ओर पेट में लगातार दर्द रहता है, जो समय के साथ बढ़ सकता है।
⦿ अनावश्यक वजन घटना: यदि कोई व्यक्ति अपने आहार या जीवनशैली में बदलाव किए बिना तेजी से वजन घटा रहा है, तो यह यकृत कैंसर का संकेत हो सकता है।
⦿ भूख में कमी: पाचनक्रिया पर असर होने के कारण भूख कम लगती है, जिससे शरीर में ऊर्जा की कमी होने लगती है और समग्र स्वास्थ्य खराब होने लगता है।
⦿ शारीरिक थकान और कमजोरी: कैंसर के कारण यकृत सही से पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं कर पाता, जिससे शरीर में लगातार थकान और कमजोरी पैदा होती है।
⦿ पीलिया (जॉन्डिस): यकृत कमजोर पड़ने पर पित्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है, जिससे त्वचा और आंखें पीली पड़ जाती हैं, और शरीर में खुजली भी हो सकती है।
⦿ पेट फूलना (अस्काइटिस): यकृत सही से तरल पदार्थ का प्रबंधन नहीं कर पाता, जिससे पेट में अतिरिक्त तरल पदार्थ जमा हो जाता है।
⦿ मल का रंग बदलना: यकृत में पित्त प्रवाह अवरुद्ध होने से मल का रंग फिका, सफेद या राख जैसा हो सकता है, जो यकृत की खराब स्थिति का संकेत हो सकता है।
⦿ मतली और उल्टी होना: पाचनतंत्र पर कैंसर का प्रभाव पड़ने से बार-बार अपच, उल्टी और पेट में असहजता होती है।
⦿ त्वचा पर खुजली: यकृत की गड़बड़ी से शरीर में पित्त बढ़ता है, जिससे त्वचा पर खुजली और त्वचा सूखने की समस्या होती है।
⦿ शरीर की नसों में परिवर्तन: यकृत की कार्यक्षमता घटने से रक्त प्रवाह खराब होता है, जिससे त्वचा पर नसें दिखाई देने लगती हैं।
⦿ हेपेटाइटिस बी और सी वायरस: ये वायरस यकृत में लंबे समय तक सूजन पैदा करते हैं, जिससे यकृत की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
⦿ अत्यधिक शराब का सेवन: लंबे समय तक शराब पीने से यकृत पर भार पड़ता है, जो सिरोसिस (यकृत की सूखी और खराब स्थिति) की ओर ले जा सकता है और कैंसर का कारण बन सकता है।
⦿ फैटी लिवर (यकृत में वसा का जमाव): अधिक वसायुक्त भोजन और अनियंत्रित वजन बढ़ने से यकृत में वसा जमा होती है, जो सिरोसिस और यकृत कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है।
⦿ सिरोसिस (यकृत की क्षति): लंबे समय तक यकृत को होने वाले नुकसान के कारण उसकी कार्यक्षमता घट जाती है, और ये अस्वस्थ कोशिकाएं कैंसर में बदल सकती हैं।
⦿ धूम्रपान और तंबाकू: यकृत के लिए जहरीले तत्व बनाकर रक्त प्रवाह में शामिल होते हैं, जिससे कैंसर की कोशिकाएं उत्पन्न हो सकती हैं और रोग का खतरा बढ़ता है।
⦿ अनियमित और अप्राकृतिक आहार: अधिक तला हुआ, मसालेदार और प्रोसेस्ड फूड का सेवन यकृत पर तनाव उत्पन्न करता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता धीरे-धीरे घटती है।
⦿ रसायन और जहरीले पदार्थ: कुछ उद्योगों में उपयोग होने वाले रसायन या फफूंद से बने जहरीले पदार्थ (अफ्लाटॉक्सिन) यकृत की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
⦿ मोटापा और मधुमेह: अधिक वजन और रक्त में बढ़ा हुआ ग्लूकोज स्तर यकृत की कोशिकाओं को खतरे में डालता है, और लंबे समय में कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है।
⦿ आनुवंशिक कारक: यदि परिवार के सदस्यों में किसी को यकृत कैंसर हुआ हो, तो उस व्यक्ति में भी रोग होने की संभावना अधिक होती है।
⦿ लंबे समय तक दवाओं का अधिक सेवन: किडनी या लिवर पर भार डालने वाली दवाएं लंबे समय तक यकृत की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर, रोग का खतरा बढ़ा सकती हैं।
⦿ रक्त परीक्षण (एएफपी टेस्ट): यकृत कैंसर के निदान के लिए "अल्फा फेटोप्रोटीन" (एएफपी) नामक प्रोटीन का स्तर रक्त में बढ़ता है, जो कैंसर के संकेत के रूप में देखा जाता है।
⦿ अल्ट्रासाउंड: इस सरल और कम खर्चीली टेस्ट द्वारा यकृत में गांठ या असामान्य वृद्धि की खोज की जाती है, जो प्रारंभिक अवस्था में कैंसर पकड़ने में सहायक बनती है।
⦿ सीटी स्कैन (CT Scan): यकृत के क्षेत्र में ट्यूमर की स्थिति, आकार और अन्य अंगों में फैलने की संभावना जानी जा सकती है, जो डॉक्टर को उचित उपचार के लिए मदद करता है।
⦿ एमआरआई (MRI): अधिक सटीकता के लिए यकृत और आसपास के टिश्यू की विस्तृत छवि प्राप्त की जाती है, जिससे कैंसर कोशिकाओं की उपस्थिति और वह कितना फैला है यह निर्धारित होता है।
⦿ पेट स्कैन (PET Scan): कैंसरग्रस्त कोशिकाएं कितनी सक्रिय हैं और शरीर के अन्य भागों में फैली हैं या नहीं, यह जानने के लिए यह टेस्ट उपयोगी होता है।
⦿ बायोप्सी: यकृत के संदिग्ध टिश्यू के नमूने लेकर, प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोप के तहत परीक्षण किया जाता है, जो कैंसर के सटीक निदान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
⦿ एलास्टोग्राफी (Fibro Scan): यकृत में हो रहे फाइब्रोसिस (कठोरता) या सिरोसिस के स्तर का निदान करने के लिए यह टेस्ट उपयोगी है।
⦿ एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड (EUS): यकृत के अंदर गांठ या कैंसर के बढ़ते कोशिकाओं की उपस्थिति जानने के लिए अधिक आधुनिक तकनीक है।
⦿ लैप्रोस्कोपी: यदि अन्य परीक्षणों द्वारा सटीक निदान न हो, तो यकृत के अंदर कैमरा डालकर अनुसंधान किया जाता है, जो सटीक परिणाम देता है।
⦿ जेनेटिक टेस्टिंग: यदि आनुवंशिक यकृत रोग या कैंसर होने की संभावना हो, तो डीएनए स्तर पर परीक्षण करके संभावित खतरा जाना जा सकता है।
⦿ सर्जरी (यकृत का भाग हटाना): यदि कैंसर यकृत के एक भाग में सीमित हो, तो प्रभावित भाग को हटाकर, यकृत के स्वस्थ भाग को कार्यशील रखने का प्रयास किया जाता है।
⦿ यकृत प्रत्यारोपण: यदि पूरा यकृत कैंसरग्रस्त हो, तो स्वस्थ दाता का यकृत बदल दिया जाता है, जो जीवन बचाने का सबसे अच्छा विकल्प बन सकता है।
⦿ कीमोथेरेपी: कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के लिए दवाओं का सेवन कराया जाता है, खासकर यदि कैंसर शरीर के अन्य भागों में फैल गया हो।
⦿ टारगेटेड थेरेपी: कैंसर के विशेष अणुओं को निशाना बनाकर उसकी वृद्धि को रोकने वाली दवाएं, जो सामान्य केमिकल उपचार से अधिक प्रभावी हो सकती हैं।
⦿ इम्यूनोथेरेपी: रोग प्रतिकारक तंत्र को मजबूत बनाकर कैंसर से लड़ने में मदद करने वाली नवीन उपचार पद्धति, जो देर से चरण के रोगियों के लिए उपयोगी है।
⦿ रेडियेशन थेरेपी: कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए उच्च-ऊर्जा विकिरण का उपयोग होता है, खासकर यदि सर्जरी संभव न हो।
⦿ ट्रांसआर्टीरियल केमोएम्बोलाइजेशन (TACE): विशेष दवाएं सीधे यकृत के ट्यूमर में पहुंचाकर कैंसर की वृद्धि को रोकने का प्रयास किया जाता है।
⦿ रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (RFA): ट्यूमर को गर्मी से नष्ट करने के लिए रेडियो-वेव तकनीक का उपयोग होता है, जो खासकर छोटे ट्यूमर के लिए प्रभावी है।
⦿ पैलिएटिव देखभाल: यदि कैंसर का पूर्ण उपचार संभव न हो, तो रोगी को आराम और दर्द नियंत्रण के लिए थेरेपी दी जाती है।
⦿ आहार और जीवनशैली में बदलाव: स्वस्थ भोजन, अलसी, हरी सब्जियां और कम वसायुक्त आहार से यकृत के स्वास्थ्य में सुधार संभव है, जो उपचार में भी सहायक होता है।
उपचार | संकेत | सामान्य दुष्प्रभाव | अपेक्षित परिणाम |
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सर्जरी (यकृत का भाग हटाना) | यदि कैंसर केवल यकृत के एक भाग में सीमित हो | दर्द, पाचन समस्या, अस्थायी थकान | कैंसरग्रस्त भाग को हटाकर यकृत की कार्यक्षमता सुधारना |
यकृत प्रत्यारोपण | यदि पूरा यकृत प्रभावित हो और दाता उपलब्ध हो | अवरोध, रोग प्रतिकारक दवाओं के दुष्प्रभाव | पूर्ण नया और स्वस्थ यकृत मिलने से अधिक जीवन की संभावना |
कीमोथेरेपी | यदि कैंसर फैल गया हो और अन्य उपचार संभव न हो | उल्टी, बाल झड़ना, शारीरिक थकान | कैंसर की कोशिकाओं को नियंत्रित करके उसकी वृद्धि रोकना |
टारगेटेड थेरेपी | यदि कैंसर विशेष प्रोटीन या जीन पर आधारित हो | त्वचा की समस्याएं, रक्तचाप में परिवर्तन | कैंसर की विशेष कोशिकाओं को निशाना बनाकर नष्ट करना |
इम्यूनोथेरेपी | यदि शरीर का रोग प्रतिकारक तंत्र कैंसर को पहचान नहीं सकता | एलर्जी प्रतिक्रिया, बुखार, थकान | शरीर के प्रतिकारक तंत्र को मजबूत बनाकर कैंसर से लड़ना |
रेडियेशन थेरेपी | यदि ट्यूमर को छोटा करना हो या दर्द घटाना हो | त्वचा पर लालिमा, थकान, सिरदर्द | ट्यूमर की वृद्धि रोकना या छोटा करना |
TACE (केमोएम्बोलाइजेशन) | यदि कीमोथेरेपी सीधे यकृत में पहुंचानी हो | पेट की समस्या, हल्का बुखार, कमजोरी | ट्यूमर तक कीमोथेरेपी पहुंचाकर उसे नष्ट करना |
RFA (रेडियो एब्लेशन) | यदि ट्यूमर छोटा हो और सर्जरी संभव न हो | गर्मी लगना, त्वचा पर जलन, स्थानीय दर्द | ट्यूमर को ऊंचे तापमान पर गर्म करके नष्ट करना |
पैलिएटिव केयर | यदि कैंसर विकसित चरण में पहुंच गया हो | दर्द नियंत्रण, थकान घटाने की दवाएं | रोगी को आराम और जीवन की गुणवत्ता सुधारना |
आहार और जीवनशैली में बदलाव | यकृत को अधिक नुकसान रोकने के लिए | पाचन सुधार, ऊर्जा में वृद्धि | स्वास्थ्यप्रद आहार से यकृत का स्वास्थ्य सुधारना |
MS, MCh (G I cancer Surgeon)
डॉ. हर्ष शाह अहमदाबाद के एक प्रसिद्ध जीआई और एचपीबी रोबोटिक कैंसर सर्जन हैं। वे भोजन नली, पेट, लीवर, पैंक्रियास, बड़ी आंत, मलाशय और छोटी आंत के कैंसर का इलाज करते हैं। वे अपोलो अस्पताल में उपलब्ध हैं।
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